सच्ची भक्ति और एकाग्रता: सम्राट अकबर का अहंकार और प्रेमिका का दिव्य पाठ

दिल्ली से कुछ दूर, सम्राट जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर एक लंबी शिकार यात्रा के बाद वापिस लौट रहे थे। दिन ढल चुका था, और पश्चिम में सूरज अपनी अंतिम लालिमा बिखेर रहा था।

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शिकार के मैदान से मिला एक अनमोल सबक

दिल्ली से कुछ दूर, सम्राट जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर एक लंबी शिकार यात्रा के बाद वापिस लौट रहे थे। दिन ढल चुका था, और पश्चिम में सूरज अपनी अंतिम लालिमा बिखेर रहा था। नमाज़ का समय हो चुका था। अकबर ने एक शांत स्थल का चुनाव किया और ख़ुद को प्रभु की प्रार्थना में लीन कर लिया।

अकबर अभी अपनी इबादत (Prayer) के बीच में ही थे, कि अचानक पीछे से तेज़ गति से भागती हुई एक युवती ने उन्हें असावधानी से ज़ोरदार धक्का दिया। प्रार्थना में लीन सम्राट डगमगा गए, उनका आसन हिल गया, और क्षण भर के लिए उनकी एकाग्रता भंग हो गई।

क्रोध की एक लहर उनके मन में उठी, लेकिन नमाज़ बीच में नहीं तोड़ी जा सकती थी। उन्होंने जल्दी-जल्दी अपनी प्रार्थना पूरी की।

जैसे ही अकबर ने नमाज़ ख़त्म की, उनका शाही क्रोध भड़क उठा। वह उस युवती का पीछा करने वाले थे, लेकिन वह लड़की ख़ुद ही हाँफती हुई वापस लौट रही थी।

अकबर ने कठोर स्वर में कहा: "दुस्साहस! ए लड़की, क्या तुझे होश नहीं है? एक तो कोई कायनात के मालिक से मुखातिब हो, और तू उसे धक्का दे? क्या तुझे नहीं मालूम कि फकीर हो या सम्राट, इबादत का सम्मान करना चाहिए? तूने मेरी इबादत को भंग किया है!"

युवती तुरंत झुकी और उसने सम्राट को सम्मानपूर्वक प्रणाम किया। उसकी आँखों में अभी भी प्रेम का एक नशा-सा छाया हुआ था।

उसने धीमी, लेकिन स्थिर आवाज़ में कहा, "माफ़ करें, हुज़ूर! मैं आपकी इबादत को भंग करने की हिम्मत कभी नहीं कर सकती। दरअसल, मेरा प्रियतम आज बरसों बाद शहर लौट रहा था। मैं उसकी पहली झलक पाने और उसका स्वागत करने के लिए इतनी व्याकुल थी कि रास्ते पर किसी के होने का... बल्कि, सच कहूँ तो, आपका शाही वजूद भी मुझे दिखाई नहीं दिया।"

युवती ने कुछ पल ठहराव लिया, फिर अपनी बात में एक गहरा अध्यात्मिक प्रश्न जोड़ दिया:

"सम्राट! मैं तो केवल अपने एक मामूली, नश्वर प्रेमी से मिलने की तीव्र आस में थी, और इस आस में मुझे संसार का सबसे बड़ा सम्राट भी नहीं दिखा। और आप? आप तो स्वयं उस 'परमपिता' से सीधे बात कर रहे थे... आपको कैसे मेरा धक्का, मेरी परछाईं भी मालूम हुई? क्या आपकी 'सच्ची भक्ति और एकाग्रता' में कोई कमी थी?"

अकबर के चेहरे पर छाया सारा क्रोध एक पल में पिघल गया। उनका सिर शर्म से झुक गया।

वह सोचने लगे: “इस साधारण लड़की ने मुझे जीवन का सबसे बड़ा सबक सिखा दिया। मैं तो केवल एक औपचारिकता पूरी कर रहा था, जबकि यह अपने प्रेम में पूरी तरह लीन थी। मेरा ध्यान इबादत में कम, इस बात पर ज़्यादा था कि कोई मुझे डिस्टर्ब न करे। यह वास्तव में सच्ची भक्ति और एकाग्रता का सबसे बड़ा प्रमाण है।”

अकबर समझ गए कि जिसे ईश्वर से मिलने की वास्तविक तमन्ना होती है, वह सांसारिक वाद-विवाद या शोरगुल में नहीं पड़ता। जिसके दिल में उस परमशक्ति की जगह बन जाती है, उसके लिए बाहरी जगत की कोई फ़िक्र बाक़ी नहीं रहती।

कहानी का सारांश (Summary)

सम्राट अकबर अपनी नमाज़ के दौरान एक युवती द्वारा धक्का दिए जाने पर क्रोधित हो उठे। युवती ने विनम्रता से बताया कि वह अपने प्रेमी से मिलने की धुन में इतनी लीन थी कि उसे सम्राट का भान ही नहीं हुआ। इसके बाद, उसने अकबर से प्रश्न किया कि यदि वह स्वयं ईश्वर से एकाग्र होकर प्रार्थना कर रहे थे, तो उन्हें एक साधारण युवती का धक्का कैसे मालूम हुआ? इस प्रश्न ने अकबर को अपनी अपूर्ण सच्ची भक्ति और एकाग्रता का एहसास कराया और उन्हें सिखाया कि परम सत्ता की उपासना में सांसारिक विघ्न व्यर्थ होते हैं।

इस कहानी से मिलने वाली सीख (Moral Lesson)

"अगर ख़ुदा नहीं है, तो उसका ज़िक्र क्यों? और अगर ख़ुदा है, तो फिर फ़िक्र क्यों?"

यह दृष्टांत सिखाता है कि सच्ची भक्ति और एकाग्रता का अर्थ है – अपने लक्ष्य या ईश्वर के प्रति इतना लीन हो जाना कि बाहरी दुनिया के सभी विघ्न तुच्छ हो जाएँ। जब हमारी लगन और ध्यान पूर्ण होता है, तभी हम किसी भी कार्य में सफलता और शांति प्राप्त कर सकते हैं। बाहरी दिखावे या कर्मकांड से ज़्यादा महत्व मन की पूर्ण समर्पण का होता है।

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